फसलों में रासायनिक दवाइओ का लगातार उपयोग से उपज में कमी होती जाती है और भूमि और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसके विपरीत ट्राइकोडर्मा रोग कारक के विकास रोकने के साथ साथ प्रकृति के अनुकूल है
जानिए क्या है ट्राइकोडर्मा – ट्राइकोडर्मा एक कवक है, जो सामान्यतः विभिन्न प्रकार की जलवायु में मौजूद रहता है। इसकी कई प्रजातियां हैं, परंतु उनमें ट्राइकोडर्मा हारजिएनम, ट्राइकोडर्मा वाइरेन्स, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ट्राइकोडर्मा एस्परेलम अधिक उपयोगी प्रजातियां हैं। यह कवक हरे रंग की होती है। ट्राइकोडर्मा, बीजाणुओं के रूप में कोनिडिया तथा क्लेमाइडोस्पोर उत्पन्न करता है। इनमें से क्लेमाइडोस्पोर विपरीत वातावरण में लंबे समय तक जमीन में पड़े रहते हैं। अनुकूल वातावरण मिलने पर यह क्लेमाइडोस्पोर फफूंद तंतु बनकर वृद्धि करते हैं । रोगजनकों जैसे फ्यूजेरियम, पिथियम, राइजोक्टोनिया आदि में स्थान व पोषण के लिए प्रतिस्पर्धा करता है, जिससे रोगजनकों की वृद्धि व विकास रुक जाता है। कृत्रिम तरीके से सरलता से उगा सकते है |
ट्राइकोडर्मा उपयोग करते समय सावधानियां – अच्छे परिणाम के लिए किसी मान्यताप्राप्त संस्था या कंपनी से ट्राइकोडर्मा कल्चर खरीदना चाहिए । ट्राइकोडर्मा कल्चर 6 महीने से चाहिए । बीज को उपचारित करने के बाद छाया में रखें। फफूंद के विकास के लिए नमी होनी चाहिए है । इसलिए सूखी मृदा में प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके प्रयोग के बाद 4-5 दिनों तक रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें। खड़ी फसल में इसका छिड़काव शाम के समय करे | सुबह धूप निकलने से पहले भी छिड़काव किया जा सकता है | कम्पोस्ट खाद, गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट में मिलाने के बाद इसे अधिक समय तक न रखें।
प्रयोग करने की विधि – ट्राइकोडर्मा को विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जाता है। इसका प्रयोग मृदा, बीज तथा जड़ के उपचार के साथ फसलों में छिड़काव के लिए भी किया जा सकता है।
बीज उपचार – करने से पहले प्रति कि.ग्रा. बीज में 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को समान रूप से मिलाएं। इससे बीज की बुआई के बाद ट्राइकोडर्मा फफूंद भी मृदा में बढ़ने लगता है और हानिकारक फफूंदों को नष्ट करके फसलों को रोगों से बचाता है।
मृदा उपचार – मृदा को उपचारित करने के लिए खेत तैयार करते समय 25 कि.ग्रा. कम्पोस्ट खाद, गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट में 2 कि. ग्रा. प्रति एकड़ ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर खेत में समान रूप से मिलाएं।
ट्राइकोडर्मा से रोग प्रतिरोधकता – ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से जैसे शुष्क विगलन, जड़गलन, बीज गलन, फाइटोफ्थोरा तना विगलन आदि रोगों का आसानी से नियंत्रण कर सकते है